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Wednesday, 7 July 2021

Modi New Cabinet: जानिए कैबिनेट विस्तार में किस राज्य से कितने-कितने मंत्री बनाए गए, किसे मिला कौनसा पद

 

New Cabinet of Modi: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल का पहले मंत्रिमंडल विस्तार कर दिया है जानिए कैबिनेट विस्तार में किस राज्य से कितने-कितने मंत्री बनाए गए, किसे मिला कौनसा पद.

 

New Cabinet of Modi: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने दूसरे कार्यकाल का पहले मंत्रिमंडल विस्तार कर दिया है. इसमें स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन, शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक, सूचना प्रौद्योगिकी के साथ कानून मंत्री का कार्यभार संभाल रहे रविशंकर प्रसाद और सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर सहित कुल 12 मंत्रियों की छुट्टी कर दी गई, जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया, शिवसेना और कांग्रेस से होते हुए बीजेपी में आए नारायण राणे और असम में हिमंत बिस्व सरमा के लिए मुख्यमंत्री पद छोड़ने वाले सर्बानंद सोनोवाल समेत 36 नए चेहरे सरकार का हिस्सा बने. जानिए कैबिनेट विस्तार में किस राज्य से कितने-कितने मंत्री बनाए गए, किसे मिला कौनसा पद.


किस राज्य से कितने-कितने मंत्री बनाए गए-

  • उतरप्रदेश से सबसे ज्यादा 16 मंत्री.
  • महाराष्ट्र से 9
  • बिहार से 6
  • गुजरात से 6
  • मघ्यप्रदेश से 6
  • कर्नाटक से 3
  • राजस्थान से 3
  • झारखंड से 3
  • तेलगांना से 2
  • असम से 2
  • हरियाणा से 2
  • ओडिशा से 2
  • गोवा से 1
  • त्रिपुरा से 1
  • मणिपुर से 1
  • पंजाब से 1
  • उत्तराखण्ड से 1
  • अरुणाचल प्रदेश से 1
  • हिमाचल प्रदेश से 1
  • दिल्ली से 1
  • जम्मू और कश्मीर से 1
  • और छत्तीसगढ़ से 1

किसे मिला कौनसा पद-


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी- कार्मिक, लोक शिकायत और पेंशन, परमाणु ऊर्जा विभाग, अंतरिक्ष विभाग, सभी महत्वपूर्ण नीतिगत मुद्दे और सभी अन्य विभागों का प्रभार है जो किसी मंत्री को नहीं दिए गए हैं.

  • राजनाथ सिंह- रक्षा मंत्री
  • अमित शाह- गृह मंत्रालय और सहयोग मंत्रालय
  • नितिन गडकरी- सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय
  • निर्मला सीतारमण- वित्त मंत्रालय और कॉर्पोरेट मंत्रालय
  • नरेंद्र सिंह तोमर- कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय
  • एस जयशंकर- विदेश मंत्री
  • अर्जुन मुंडा- जनजातीय कार्य मंत्री
  • स्मृति जुबिन ईरानी- महिला एवं बाल विकास मंत्री
  • पीयूष गोयल- वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री, उपभोक्ता कार्य मंत्री, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण और कपड़ा मंत्री
  • प्रह्लाद जोशी- संसदीय कार्य मंत्री, कोयला मंत्री और खनन मंत्री
  • नारायण राणे- सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्री
  • सर्वानंद सोनोवाल- पत्तन, पोत परिवहन एवं जलमार्ग मंत्री और आयुष मंत्री मुख़्तार
  • मुख्तार अब्बास नकवी- अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री
  • वीरेंद्र कुमार- सामाजिक न्याय एवं सहकारिता मंत्रालय
  • गिरिराज सिंह- ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्रालय
  • ज्योतिरादित्य सिंधिया- नागर विमानन मंत्री
  • रामचंद्र प्रसाद सिंह- स्टील मंत्री
  • अश्विनी वैष्णव- रेलवे मंत्री संचार मंत्री और इलेक्ट्रॉनिक्स एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री
  • अश्विनी कुमार पारस- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री
  • गजेंद्र सिंह शेखावत- जल शक्ति मंत्री
  • किरेन रिजिजू- कानून एवं न्याय मंत्री
  • राजकुमार सिंह- ऊर्जा मंत्री, नव एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री
  • हरदीप सिंह पुरी- पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री और आवास एवं शहरी विकास मंत्री
  • मनसुख मंडाविया- स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री और रसायन एवं उर्वरक मंत्री
  • भूपेंद्र यादव- पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री और श्रम और रोजगार मंत्री
  • महेंद्र नाथ पांडेय- भारी उद्योग मंत्री
  • परषोत्तम रूपला- मत्यस्यपालन पशुपालन एवं डेयरी मंत्री
  • जी किशन रेड्डी- संस्कृति मंत्री पर्यटन मंत्री और पूर्वोत्तर विकास मंत्री
  • अनुराग ठाकुर- सूचना एवं प्रसारण मंत्री और युवा एवं खेल मंत्री

 



Saturday, 16 January 2021

पोल बना कर ग्रामवासी चुन रहे है अपने पसंद के प्रधान, 144 वोटों के साथ सबसे आगे चल रहे है अनिल शुक्ल , वहीँ दूसरे स्थान पर है मनोज तिवारी




 प्रयागराज / मीरपुर : ग्राम प्रधान का चुनाव नजदीक है, इसको लेकर ग्राम पंचायतों में काफी उत्साह है। कोरोना के आने के बाद चुनाव की उम्मीद कम ही थी लेकिन सरकार की तरह से चुनाव को हरी झंडी दिखा दी गयी है। 




पोल बना कर ग्रामवासी चुन रहे है अपनी पसंद के प्रधान 

सराय ममरेज / ग्राम मीरपुर में ग्रामवासी खुद ही इंटरनेट पर पोल बना कर जान रहे है लोगो की पसंद।  जो की ये उत्साह आने वाले चुनाव में काफी महत्वपूर्ण योगदान देगा।  इस पोल में प्रधान प्रत्याशियों में काफी कड़ी टक्कर दिख रही है। मीरपुर में अभी कुल 6 प्रत्याशी मैदान में है जिसमे से 141 वोटों के साथ सबसे आगे अनिल शुक्ल चल रहे है, वहीँ दूसरे स्थान पर मनोज तिवारी है।  क्रमशः खिलाड़ी दुबे, धर्मपाल यादव, सुरेश यादव और विनोद दुबे है। ये उत्साह और नयी तकनीक का प्रयोग इन ग्रामवाशियों की बुद्धिमत्ता को दर्शाता है। आप भी कर सकते है इनको वोट (ग्रामसभा मीरपुर का प्रधान कौन हो सकता है ? - https://strawpoll.com/91pvrd819



उत्तर प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव (UP Panchayat Elections 2021) को लेकर तैयारियां तेज हो गई हैं। अब लोगों को आरक्षण सूची का इंतजार है। इस समय अधिकांश जिलों में प्रशासनिक स्तर पर आरक्षण सूची का काम चल रहा है। जानकारी के मुताबिक, वर्तमान में जिस वर्ग के लिए सीट आरक्षित है, वह आगामी चुनाव में उस वर्ग के लिए आरक्षित नहीं रहेगी। आरक्षण वरीयता क्रम में एसटी की कुल आरक्षित सीटों में से एक तिहाई एसटी महिला के लिए आरक्षित होंगी। बाकी में महिला या पुरुष दोनों रहेंगे। एससी की 21 प्रतिशत आरक्षित सीटों में एक तिहाई सीटें इस वर्ग की महिला और बाकी बची सीटें इसी वर्ग के महिला या पुरुष दोनों के लिए होंगी।

ऐसे ही ओबीसी की 27 फीसदी सीटों में तिहाई सीटें इस वर्ग की महिला के लिए आरक्षित की जाएंगी। बाकी इस वर्ग की महिला या पुरुष दोनों के लिए अनारक्षित रहेंगी। कुल की 50 प्रतिशत सीटें अनारक्षित होंगी, मगर उनमें एक तिहाई सीटें सामान्य जाति की महिला प्रत्याशियों के लिए आरक्षित रहेंगी। पंचायत चुनाव में सीटों पर आरक्षण अवरोही क्रम में लागू होगा। ग्राम पंचायतों की वर्ष 2011 की जनसंख्या के आंकड़े फीड करा रहे हैं। ब्लॉकों को सीधे लखनऊ से जोड़ा गया है। इस बार पंचायत चुनाव का आरक्षण लखनऊ से ही तय होगा। आरक्षण सूची भी ऑनलाइन जारी होगी। कोई भी घर बैठे पंचायत चुनाव के 1. आरक्षण के बारे में पता कर सकेगा।

कैसे आरक्षित होगी सीट

ग्राम पंचायतों में आरक्षण लागू करने के लिए राजस्व ग्रामों की जनसंख्या का आंकलन किया जाएगा। पांच साल पहले चुनाव के समय ग्राम पंचायत की क्या स्थिति थी, वर्तमान में क्या स्थिति है, उसी आधार पर तय होगा कि उस ग्राम पंचायत की सीट किस प्रत्याशी के लिए आरक्षित होगी। प्रदेश में जो त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव होने हैं। उसमें ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य बीडीसी, वार्ड मेंम्बर, जिला पंचायत सदस्य के लिए अलग-अलग चुनाव प्रक्रिया होगी। गांव-गांव पदों के साथ उनकी संख्या भी निर्वाचन आयोग ने बढ़ाई है। इसमें एक वार्ड से सदस्य के लिए 18 पर्चे भरे जा सकेंगे।

ग्राम प्रधान के लिए 57 लोग भर सकेंगे पर्चा

वहीं बीडीसी के लिए 36 पर्चा, ग्राम प्रधान के लिए 57 और जिला पंचायत सदस्य के लिए 53 लोग पर्चा भर सकेंगे। अधिकारियों से मिल रही जानकारी के अनुसार पिछले चुनावों में यह संख्या 4.5 से 47 रहती थी, लेकिन इस बार इसे बढ़ाया गया है। पहले प्रत्याशी अधिक होने के कारण कई लोग चुनाव लड़ने से वंचित रह जाते थे। अब लोगों का चुनाव लड़ने का मौका खाली न जाएगा। वह भी अपनी दावेदारी कर सकेंगे और आसानी से चुनाव लड़ सकेंगे।


Monday, 12 October 2020

बिहार में जीत मिलने के बाद 'माननीयों' पर मेहरबानी होती है लक्ष्‍मी

 

आप यकीन करें या न करें, सच ये है कि बिहार में सांसद हों या विधायक, चुनाव जीतने के बाद लक्ष्‍मी उन पर कुछ ज्‍यादा ही मेहरबान हो जाती है. ऐसा हम नहीं कह रहे. ये कहना है कि इलेक्‍शन वॉच और एडीआर यान‍ी द एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्‍स संस्‍था का

आप यकीन करें या न करें, सच ये है कि बिहार में सांसद हों या विधायक, चुनाव जीतने के बाद लक्ष्‍मी उन पर कुछ ज्‍यादा ही मेहरबान हो जाती है. ऐसा हम नहीं कह रहे. ये कहना है कि इलेक्‍शन वॉच और एडीआर यान‍ी द एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफार्म्‍स संस्‍था का. ये संस्‍थाएं देश और राज्‍यों में होने वाले चुनावों में शामिल होने वाले नेताओं का अध्‍ययन करती हैं. नामांकन पत्र में व्‍यक्तिगत, शैक्षिक, आर्थिक व आपराधिक सूचनाओं के आधार पर अपनी रिपोर्ट तैयार करती हैं. 


औसत संपत्ति में दोगुने से ज्‍यादा इजाफा 

इलेक्‍शन वॉच और एडीआर की ताजा रिपोर्ट बिहार को लेकर है. 2005 से लेकर अब तक हुए चुनावों में यहां 10785 नेता हिस्‍सा ले चुके हैं. इन सभी के बारे में विश्‍लेषण करने पर चौंकाने वाली जानकारियां सामने आई हैं.  जैसे कि बीते 15 वर्षों में चुनाव लड़ने वालों की औसत संपत्ति 1.09 करोड़ थी. इसमें चुनाव जीतने वाले सांसद और विधायकों की संपत्ति बाद में दो गुने से ज्‍यादा बढ़ी है. इसका औसत 2.25 करोड़ है. यान‍ी अगर किसी नेता के पास चुनाव लड़ने से पहले 1.09 करोड़ की संपत्ति थी तो चुनाव जीतने के बाद अगले चुनाव तक वह बढ़कर 2.25 करोड़ हो गई.

जितने मुकदमे, जीत की संभावना उतनी ज्‍यादा 

रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2005 से अब तक 10785 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे हैं. इन उम्मीदवारों में 30 प्रतिशत ऐसे थे, जिन्होंने खुद पर लगे आपराधिक आरोपों की घोषणा नामांकन के दौरान की. इन दागी लोगों में 20 प्रतिशत ऐसे हैं, जिनके ऊपर गंभीर अपराध के आरोप हैं. जीत हासिल करने वाले 820 सांसद व विधायकों का विश्लेषण हुआ तो इनमें 57 प्रतिशत पर आपराधिक आरोप थे. इसमें भी 36 प्रतिशत पर गंभीर अपराध के आरोप थे. यानी वही उम्मीदवार ज्यादा जीते जिन पर आपराधिक घटनाओं में लिप्त होने का आरोप है

 

पढ़े-लिखे उम्मीदवारों पर आपराधिक आरोप ज्‍यादा 

इस रिसर्च में शिक्षा और अपराध का तुलनात्‍मक अध्‍ययन भी किया गया. इसके नतीजे और ज्‍यादा रोचक निकले. चुनाव मैदान में उतरे स्नातक या उसके अधिक की शिक्षा ग्रहण करने वालों में 33 प्रतिशत पर आपराधिक मामले  हैं. इनमें 21 प्रतिशत शिक्षित उम्मीदवारों पर गंभीर आपराधिक मामलों का आरोप है. कम शिक्षित यानी 12वीं तक की शिक्षा ग्रहण करने वाले उम्मीदवारों में 29 प्रतिशत पर ही आपराधिक घटनाओं के आरोप हैं जबकि गंभीर आपराधिक घटनाओं के आरोपी 20 प्रतिशत हैं. स्‍पष्‍ट है कि जो ज्‍यादा पढ़े-लिखे थे, उन पर आपराधिक आरोप ज्‍यादा हैं.

 

Friday, 24 July 2020

राजस्थान की राजनीति में अब आगे क्या?:हाईकोर्ट के आदेश से पायलट खेमे को राहत, लेकिन गहलोत की चिंता बढ़ी; राज्यपाल की भूमिका भी बेहद अहम



राजस्थान में सियासी उठापटक का सिलसिला जारी है। शुक्रवार को हाईकोर्ट के फैसले से पायलट गुट को फौरी राहत मिली है।

  • हाईकोर्ट के निर्देश के बाद विधानसभा स्पीकर पायलट गुट के विधायकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकते
  • गहलोत के सामने अपने विधायकों को सहेज कर रखने की बड़ी चुनौती, इसलिए वह जल्द सत्र बुलाना चाहते हैं

प्रदेश में जारी सियासी घमासान के बीच राजस्थान हाईकोर्ट ने पायलट खेमे को राहत दी है। इससे विधानसभा स्पीकर सचिन पायलट गुट के विधायकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकते। इस आदेश के बाद अब सभी की निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिक गई हैं। राज्यपाल भी इस मामले में अब अहम किरदार बन गए हैं, क्योंकि विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर गहलोत और राजभवन में टकराव शुरू हो गया है। अब आगे क्या-क्या हो सकता है इस पर एक नजर...

1. अब पायलट खेमा क्या कर सकता है?

स्पीकर फिलहाल पायलट खेमे के विधायकों को अयोग्य नहीं ठहरा सकते। इससे पायलट खेमे को थोड़ा और समय मिल गया है। वे इसका इस्तेमाल गहलोत खेमे के कुछ और विधायकों को अपनी ओर करने के लिए कर सकते हैं। हालांकि, इसमें भाजपा की सबसे बड़ी भूमिका होगी। भाजपा और पायलट खेमा कोशिश करेगा कि वह सरकार गिरानेभर की संख्या जुटा ले।  

पायलट खेमे को फौरी तौर पर राहत मिली है, लेकिन अब उन्हें सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अगर हाईकोर्ट के स्टे को हटा दिया, तो एक बार फिर स्पीकर पायलट खेमे के खिलाफ अयोग्यता की कार्रवाई कर सकते हैं।    

2. गहलोत खेमे के पास क्या विकल्प हैं

हाईकोर्ट का स्पीकर के कार्रवाई कराने के अधिकार पर स्टे गहलोत खेमे के लिए झटका है। गहलोत खेमा सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेगा। गहलोत ने राज्यपाल से विधानसभा का सत्र बुलाने का अनुरोध किया है, लेकिन राज्यपाल ने इस पर आखिरी फैसला नहीं किया है। मुख्यमंत्री ने राज्यपाल पर केंद्र का दबाव होने का आरोप भी लगाया है।

अगर राज्यपाल विधानसभा सत्र बुलाने की इजाजत दे देते हैं तो गहलोत विश्वास प्रस्ताव लाकर बहुमत साबित करने का प्रयास करेंगे। गहलोत खेमे का दावा है कि उनके पास 106 विधायकों का समर्थन है, जो फिलहाल बहुमत के लिए काफी है। 

3. अब राज्यपाल क्या करेंगे?

  • संवैधानिक मामलों के जानकार प्रो. दिनेश गहलोत का कहना है कि संविधान की अनुसूची 163 में साफ लिखा है कि राज्यपाल मंत्रिमंडल की सलाह पर सत्र बुलाने का फैसला करेंगे। हालांकि, इसको लेकर संवैधानिक स्थिति साफ नहीं है और राज्यपालों पर केंद्र सरकार के इशारे पर फैसले करने के आरोप लगते रहते हैं। मौजूदा मामले में भी गहलोत खेमा आरोप लगा रहा है कि राज्यपाल उनकी विधानसभा सत्र बुलाने की सिफारिश मान नहीं रहे हैं।
  • विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की स्थिति में कांग्रेस पार्टी एक बार फिर व्हिप जारी करेगी। तब बागी विधायक संवैधानिक संकट का हवाला देकर फिर एक बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। केंद्र सरकार को संवैधानिक संकट की आड़ में राष्ट्रपति शासन लागू करने का ठोस कारण मिल जाएगा। राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद गहलोत खेमे के लिए अपने विधायकों को जोड़े रखना बेहद मुश्किल हो जाएगा।
  • राष्ट्रपति शासन लागू होने के कुछ समय बाद भाजपा और पायलट खेमे के विधायक मिलकर नई सरकार बनाने का दावा पेश कर सकते हैं।   

4. सुप्रीम कोर्ट में क्या होगा?

2016 में उत्तराखंड में कुछ विधायकों के पाला बदलने के कारण मुख्यमंत्री हरीश रावत की सरकार अल्पमत में आ गई थी। इस बीच केंद्र सरकार ने वहां उपजे हालात में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया। मुख्यमंत्री रावत ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन वहां से उन्हें राहत नहीं मिली। इस पर रावत सुप्रीम कोर्ट गए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर महज 4 घंटे के लिए राष्ट्रपति शासन हटा कर विधानसभा के विशेष सत्र में रावत को बहुमत साबित करने को कहा गया। रावत ने ऐसा कर दिखाया और अपनी सरकार बचा ली थी।

कितने प्रकार के होते हैं किस? जीभ साथी के मुंह में तेजी से अंदर बाहर.. इस किस को क्या कहते हैं ?

 1. माथे पर किस किसी रिश्ते की शुरुआत करने के लिए आप माथे पर किस कर सकते हैं। ध्यान रहें कि किसी से दोस्ती होने पर ही इस तरह की किस करें। यह...