Friday, 24 July 2020

राजस्थान की राजनीति में अब आगे क्या?:हाईकोर्ट के आदेश से पायलट खेमे को राहत, लेकिन गहलोत की चिंता बढ़ी; राज्यपाल की भूमिका भी बेहद अहम



राजस्थान में सियासी उठापटक का सिलसिला जारी है। शुक्रवार को हाईकोर्ट के फैसले से पायलट गुट को फौरी राहत मिली है।

  • हाईकोर्ट के निर्देश के बाद विधानसभा स्पीकर पायलट गुट के विधायकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकते
  • गहलोत के सामने अपने विधायकों को सहेज कर रखने की बड़ी चुनौती, इसलिए वह जल्द सत्र बुलाना चाहते हैं

प्रदेश में जारी सियासी घमासान के बीच राजस्थान हाईकोर्ट ने पायलट खेमे को राहत दी है। इससे विधानसभा स्पीकर सचिन पायलट गुट के विधायकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर सकते। इस आदेश के बाद अब सभी की निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिक गई हैं। राज्यपाल भी इस मामले में अब अहम किरदार बन गए हैं, क्योंकि विधानसभा सत्र बुलाने को लेकर गहलोत और राजभवन में टकराव शुरू हो गया है। अब आगे क्या-क्या हो सकता है इस पर एक नजर...

1. अब पायलट खेमा क्या कर सकता है?

स्पीकर फिलहाल पायलट खेमे के विधायकों को अयोग्य नहीं ठहरा सकते। इससे पायलट खेमे को थोड़ा और समय मिल गया है। वे इसका इस्तेमाल गहलोत खेमे के कुछ और विधायकों को अपनी ओर करने के लिए कर सकते हैं। हालांकि, इसमें भाजपा की सबसे बड़ी भूमिका होगी। भाजपा और पायलट खेमा कोशिश करेगा कि वह सरकार गिरानेभर की संख्या जुटा ले।  

पायलट खेमे को फौरी तौर पर राहत मिली है, लेकिन अब उन्हें सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अगर हाईकोर्ट के स्टे को हटा दिया, तो एक बार फिर स्पीकर पायलट खेमे के खिलाफ अयोग्यता की कार्रवाई कर सकते हैं।    

2. गहलोत खेमे के पास क्या विकल्प हैं

हाईकोर्ट का स्पीकर के कार्रवाई कराने के अधिकार पर स्टे गहलोत खेमे के लिए झटका है। गहलोत खेमा सोमवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करेगा। गहलोत ने राज्यपाल से विधानसभा का सत्र बुलाने का अनुरोध किया है, लेकिन राज्यपाल ने इस पर आखिरी फैसला नहीं किया है। मुख्यमंत्री ने राज्यपाल पर केंद्र का दबाव होने का आरोप भी लगाया है।

अगर राज्यपाल विधानसभा सत्र बुलाने की इजाजत दे देते हैं तो गहलोत विश्वास प्रस्ताव लाकर बहुमत साबित करने का प्रयास करेंगे। गहलोत खेमे का दावा है कि उनके पास 106 विधायकों का समर्थन है, जो फिलहाल बहुमत के लिए काफी है। 

3. अब राज्यपाल क्या करेंगे?

  • संवैधानिक मामलों के जानकार प्रो. दिनेश गहलोत का कहना है कि संविधान की अनुसूची 163 में साफ लिखा है कि राज्यपाल मंत्रिमंडल की सलाह पर सत्र बुलाने का फैसला करेंगे। हालांकि, इसको लेकर संवैधानिक स्थिति साफ नहीं है और राज्यपालों पर केंद्र सरकार के इशारे पर फैसले करने के आरोप लगते रहते हैं। मौजूदा मामले में भी गहलोत खेमा आरोप लगा रहा है कि राज्यपाल उनकी विधानसभा सत्र बुलाने की सिफारिश मान नहीं रहे हैं।
  • विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने की स्थिति में कांग्रेस पार्टी एक बार फिर व्हिप जारी करेगी। तब बागी विधायक संवैधानिक संकट का हवाला देकर फिर एक बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। केंद्र सरकार को संवैधानिक संकट की आड़ में राष्ट्रपति शासन लागू करने का ठोस कारण मिल जाएगा। राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद गहलोत खेमे के लिए अपने विधायकों को जोड़े रखना बेहद मुश्किल हो जाएगा।
  • राष्ट्रपति शासन लागू होने के कुछ समय बाद भाजपा और पायलट खेमे के विधायक मिलकर नई सरकार बनाने का दावा पेश कर सकते हैं।   

4. सुप्रीम कोर्ट में क्या होगा?

2016 में उत्तराखंड में कुछ विधायकों के पाला बदलने के कारण मुख्यमंत्री हरीश रावत की सरकार अल्पमत में आ गई थी। इस बीच केंद्र सरकार ने वहां उपजे हालात में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया। मुख्यमंत्री रावत ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी, लेकिन वहां से उन्हें राहत नहीं मिली। इस पर रावत सुप्रीम कोर्ट गए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर महज 4 घंटे के लिए राष्ट्रपति शासन हटा कर विधानसभा के विशेष सत्र में रावत को बहुमत साबित करने को कहा गया। रावत ने ऐसा कर दिखाया और अपनी सरकार बचा ली थी।

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