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Saturday, 16 January 2021

पोर्नोग्राफी को लेकर बदलती युवाओं की सोच बनी खतरे की घंटी

 


जानकार लोग तथा चिकित्सक हमेशा से ही पोर्नोग्राफी को मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर छोड़ने वाला, सामाजिक नियमों के खिलाफ तथा निजी रिश्तों को प्रभावित करने वाला माध्यम मानते आए हैं. लेकिन इंटरनेट की युवाओं में बढ़ती बेरोकटोक पहुंच के कारण पोर्न की युवा पीढ़ी में सरल उपलब्धता, कई परेशानियों का सबब बन सकती है. उस पर सबसे ज्यादा चिंता इस बात की है की पॉर्न को लेकर युवा पीढ़ी की सोच बदल रही है तथा वे इसे यौन संबंधों के बारे में जानकारी देने वाले माध्यम के रूप में देख रहे है.



हमारे विकासशील समाज में कई ऐसे मुद्दे हैं, जिन पर आज भी खुलकर बात करना वर्जित माना जाता हैं. यही नहीं उन मुद्दों पर बात करना सामाजिक मर्यादाओं के खिलाफ भी माना जाता है. इन मुद्दों में सबसे पहले नंबर पर आते है, यौन स्वास्थ्य तथा उससे जुड़े मुद्दे. हमारे समाज में आज भी खुलेआम सेक्स जैसे विषयों पर बात करना बेशर्मी का प्रतीक माना जाता है. वहीं पोर्नोग्राफी को एक सामाजिक बीमारी के रूप में देखा जाता है. हालांकि पोर्नोग्राफी को चिकित्सक तथा जानकार भी विक्रत मानसिकता को जन्म देने वाली लत के रूप में देखते हैं. लेकिन फिलहाल ज्यादा चिंता की बात यह है हमारी युवा तथा आने वाली पीढ़ी के ज्यादातर सदस्य पोर्नोग्राफी को यौन संबंधों के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देने वाले माध्यम के रूप में देखने लगे है.

जेब में दुनिया भर की जानकारियां

ग्लोबलाइजेशन के दौर में आज पूरी दुनिया तार- बेतार वाले इंटरनेट के घेरे में कैद है. लगातार स्मार्ट होती दुनिया में छोटे- छोटे बच्चों की जेबों में भी स्मार्ट फोन है. ऐसे में हर जानकारी उनके लिए बहुत सरलता से उपलब्ध है. अब समस्या यह है की यौन शिक्षा या शारीरिक संबंधों के बारे में जानकारी के लिए बच्चे अपने माता-पिता या शिक्षकों की बजाय अपने बहुत नजदीकी दोस्त, जो उनके हम उम्र ही होते हैं पर निर्भर करते है. लेकिन ज्यादातर मामलों में उनके पास भी यौन रिश्तों से जुड़े सभी सवालों के जवाब नहीं होते है. ऐसे में युवावस्था की दहलीज में कदम रखने वाले युवा ज्यादा जानकारी के लिए पोर्नोग्राफी साइट्स की तरफ आकर्षित होते है.

पोर्नोग्राफी को लेकर बदलती सोच

पिछले दिनों पोर्नोग्राफी को लेकर युवाओं की बदलती सोच को लेकर एक शोध किया गया. 'आर्काइव ऑफ सेक्शुअल बिहेवियर' नामक इस शोध के नतीजों के बारे में जानकारी देते हुए बोस्टन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर तथा शोध के मुख्य लेखक एमिली रॉथमैन ने बताया की इस पीढ़ी के युवाओं में पोर्नोग्राफी को लेकर गलत फहमियां बढ़ रही हैं की यह यौन संबंधों के बारे में सही और सटीक जानकारी देता है. वे इस बात को नहीं मानते हैं की पॉर्न साइट्स में जो दिखाया जाता है, वह यौन शिक्षा नहीं, बल्कि शारीरिक संबंधों का एक काल्पनिक तथा नाटकीय चित्रण हैं.

रॉथमैन बताते हैं की हर उम्र के लोगों विशेषकर युवाओं और बच्चों में इंटरनेट की सरलता से पहुंच के कारण वर्तमान समय में पोर्नोग्राफी एक वर्जित विषय माने जाने की बजाय सस्ते मनोरंजन का जरिया बन गया है. जिसका उद्देश्य बगैर यह जाने की लोगों पर उसका क्या असर पड़ रहा है, सिर्फ बनाने वाले को आर्थिक फायदा पहुंचाना है.

शोध में 18 से 24 वर्ष के 357 युवाओं तथा 14 से 17 वर्ष के 324 युवाओं पर सर्वे किया गया. जिसमें सामने आया की 18 से 24 की उम्र वाले अधिकांश युवा मानते थे की उन्हें सेक्स संबंधों के बारे में ज्यादा जानकारी पोर्नोग्राफिक फिल्मों के माध्यम से ही प्राप्त हुई. वहीं 14 से 17 साल वाले समूह के ज्यादातर सदस्यों ने माना की वह यौन संबंधों को लेकर जानकारी अपने माता-पिता तथा दोस्तों से लेने को प्राथमिकता देंगे. इस समूह के केवल 8 प्रतिशत युवाओं ने माना की उन्हें स्त्री और पुरुष के अंतरंग संबंधों के बारे में जानकारी पोर्न फिल्मों से मिली है. शोध में शामिल ज्यादातर युवाओं ने माना की उनके और उनके माता-पिता के बीच यौन संबंधों को लेकर कभी चर्चा नहीं हुई, और यदि हुई भी तो वह यौन शिक्षा के रूप में ज्यादा मददगार नहीं थी. शोध में 23.4 प्रतिशत युवाओं ने माना की उन्हें इन संबंधों की जानकारी मीडिया से तथा 12.8 युवाओं ने माना की उन्हें शारीरक संबंधों के बारे में जानकारी अपने सेक्स पार्टनर से मिली.

रॉथमैन बताते हैं की शोध में लड़कियों की अपेक्षा बड़ी संख्या में लड़कों ने माना की शारीरिक संबंधों के बारे में जानने के लिए पॉर्न बेहतर विकल्प है, जो अच्छे सेक्स के बेहतर तरीकों के बारे में जानकारी देता है.

सही माध्यम से जानकारी जरूरी

रॉथमैन मानते हैं की जन साधारण के शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के स्वास्थ्य के लिए पोर्नोग्राफी को लेकर युवाओं की बदलती सोच खतरे की घंटी बजा रही है. ऐसे में बहुत जरूरी है की युवाओं को ऐसे माध्यम से यौन शिक्षा देने का प्रयास किया जाए, जिससे उनके मन में सेक्स एक मानसिक विक्रती का उदारहण नहीं, बल्कि स्वस्थ तन, मन और रिश्तों का आधार बने. इसके अलावा सामाजिक स्तर पर ऐसे जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन भी किया जाना चाहिए, जिससे युवाओं के लिए यौन संबंध एक सुखद एहसास बने, ना की बेहतर प्रदर्शन की चाह में आनंदहीन, कष्टदायी तथा तनाव देने वाला अवसर.

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